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नजरिया आपकी सोच बदल सकता है

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नजरिया सबकुछ बदलकर रख देता है | इसी के चलते घरवालो का फिक्र करना  आपको रोक-टोक लगने लगता है |       जरा सोचें की अगर यह सब बंद हो जाये तो, यकीन मानिये, एक दिन आपको बुरा लगने लगेगा की मुझे कोई पूछने वाला नही है, सुबह से मैंने कुछ खाया की नही ? कहाँ हूँ कहाँ नही किसी को परवाह ही नही है ? तब आपको समझ आएगा की इन सब बातों की क्या कीमत होती है |       देखा जाए तो अक्सर लडको के मामले में फिक्र से सम्बंधित यही छोटी-मोटी बातें उनके द्वारा रोक-टोक के तौर पर देखी जाती हैं वहीँ लड़कियों के मामले इसका ठीक उलटा होता है यहाँ कई बार बड़े-बड़े बंधन फिक्र के नाम पर उनपर लाध दिए जातें है जिन्हें वे सहर्ष स्वीकारती है | कई बार उन्हें इल्म भी नही होता की उनका जीवन उनका ही नही रह गया वो तो बस हर किसी की आज्ञापालक और सबको संतुष्ट रखने की कोशिश करने वाली बनकर रह गई है | लेकिन इसमें यह बात भी देखी जानी जरुरी है की माँ-बाप को लड़कियों की ज्यादा फिक्र है अथार्त वे उन्हें ज्यादा प्रेम करते है और उन्हें हर मुसीबत से सुरक्षित रखना चाहते है, हर परिस्थिति में लड़ना सिखाना चाहतें हैं |      

परिवर्तन प्रकृति का नियम है।

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ये बात मैने एन. रघुरमन के मैनेजमेंट फंडा में पढ़ी थी कि उनकी माँ ने उन्हें बताया था कि व्यक्ति का सबसे महत्वपूर्ण अंग उसका कंधा होता है। क्योंकि हर व्यक्ति के पास कन्धा होता ही है चाहे वह नेत्रहीन हो, अपंग हो या कैसा भी व्यक्ति हो। कंधे के महत्वपूर्ण होने के पीछे वजह ये है कि कंधा दूसरों को सहारा दे सकता है चाहे आपको शारीरिक सहारे की आवश्यकता हो या मानसिक । जब आप बहुत निराश होते हैं कोई आपके कंधे पर हाथ रखे तो आपको कुछ साहस मिलता है, अगर आप किसी वजह से बहुत भावुक हैं तो किसी के कंधे पर सर रखकर आप मन हल्का कर सकते हैं, आप कुछ पल सुकून से बिताना चाहते हैं, रिलेक्स होना चाहते हैं तब भी कन्धा आपके लिए सहारा बन सकता है। तो इस तरह मनुष्य के जीवन मे कन्धा सबसे महत्वपूर्ण अंग माना जा सकता है। तो आपके जीवन में भी कोई न कोई व्यक्ति आपके लिए कंधे की तरह ही महत्वपूर्ण होंगे। ऐसे व्यक्ति के बारे में क्या आपको कभी ऐसा लगा है कि वो आपसे दूर जा रहा है या कोई आपका करीबी व्यक्ति आपसे कुछ दूर हो रहा है। अब वो आपसे ज्यादा बात नहीं करता, आपसे हर बात साझा नहीं करता, अपने निर्णयों में आपसे रा

बड़े लोग - बड़े लोग

शीर्षक "खिचड़ी" सीरियल के बच्चों के डायलॉग जैसा लग रहा है ना "बड़े लोग-बड़े लोग"। अरे, अरे चिंता नहीं कीजिये आपको नहीं भी पता इस(खिचड़ी सीरियल) बारे में, तब भी आज का मुद्दा आपके समझ आ जायेगा। तो आप किन्हें बड़े लोग मानते हैं ? 'बड़े लोग' से तात्पर्य ऐसे व्यक्ति से है जो विभिन्न मापदण्डो जैसे अनुभव, धन, ज्ञान आदि में बड़े हों | यहाँ बड़े होने का उम्र से कोई सरोकार नहीं है। तो आपमें से कई लोगों के लिए सचिन तेंदुलकर, सलमान खान, मुकेश अंबानी इस तरह के लोग बड़े लोगों की सूची में शीर्ष पर होगें। जो अपने-अपने क्षेत्रों में दिग्गज है और वाकई हैं भी, पर यदि आप वास्तव में इनसे रूबरू हुए हों तो हो सकता है आपका नजरिया इनके प्रति कुछ बदल जाए। हो सकता है आप उन्हें और अधिक पसंद करने लगे और ये भी हो सकता है कि कम पसंद करने लगें । (मैं स्पष्ट करना चाहूंगी कि उपरोक्त नामों पर मैं किसी भी तरह का कोई इल्ज़ाम नहीं लगा रही, ना ही कोई सवाल उठा रहीं हूँ।) पर चलिए हम व्यवहारिक या सामान्य परिवेश की बात करते हैं। आपके आस-पास मौजूद लोगों में से आप किन्हें 'बड़े लोग' या '

क्या कभी आप "Booster" बने हैं ?

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हाँ, तो क्या आप कभी बूस्टर बने हैं ? नहीं तो फिर अब बन जाइए। आपके आस पास नजर दौड़ाइये क्या कुछ लोग ऐसे नजर आते हैं। जिन्हें देखकर आपको महसूस हो "वाकई ये अच्छा काम कर रहे हैं" हो सकता है आप भी इन लोगो में से हों। और हो सकता है आप ये भी जानते हो कि कुछ अच्छा करने के लिए व्यक्ति को हमेशा अपने दायरे को बढ़ाना पड़ता है। कोई अच्छा काम कम्फर्ट जोन को तोड़कर ही किया जा सकता है जो अतिरिक्त ऊर्जा या एक्स्ट्रा एफर्ट मांगता है। तो बात ये है कि कई बार अच्छा कार्य करने वाले व्यक्ति के पास इस अतिरिक्त ऊर्जा की कुछ कमी हो जाती है क्योंकि आखिर वो भी एक इंसान है। इस कमी की पूर्ति कईबार बहुत छोरी-छोटी बातों या प्रोत्साहन से की जा सकती है। जैसे झुग्गी झोपड़ी के बच्चों को पढ़ाने जाने वाली एक रिटायर्ड शिक्षिका' जब अतिरिक्त शारीरिक श्रम के कारण इस अच्छे कार्य को करने के लिए निरुत्साहित हो गई तभी एक घटना ने उन्हें फिर से प्रेरित किया । हुआ ये था कि झुग्गी झोपड़ी बच्चा खेलते समय पास के नाले में गिर गया और भीग गया जब उसे शिक्षिका द्वारा नहाकर कपड़े बदलने के लिए कहा गया तो उसका जवाब था मेरे

उपेक्षा

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कोरोना या कोविड-19, कितने समय से जानते हैं इस बीमारी के बारे में ? यही कोई 2 साल...और इतने कम समय में इसके इलाज के लिए कई सारे उपाय खोज लिए गए हैं जिसमे सबसे प्रभावी वैक्सीन को माना जा रहा है । कुछ लोग इस पर सवाल उठा सकते हैं कि अभी तक इसका कोई अचूक समाधान नहीं है पर फिर भी कुछ न कुछ है तो सही ना, कोई आपसे ये तो नहीं कह रहा ना कि ये तो होगा ही, आपके पास इसे सहने के अलावा कोई चारा नहीं। जब इतने कम समय में इस समस्या के लिए कुछ किया जा सकता है तो उस समस्या के लिए क्यों नहीं जिससे आधी दुनिया कहीं न कहीं परेशान है। और तो और ये समस्या कोई साल दो साल से नहीं बल्कि मानव के उत्पत्ति के साथ कि ही मानी जा सकती है। अब भी शायद नहीं समझे होंगे तो चलो मै बताती हूँ, वो है माहवारी। अब आप कहेंगे ये तो कोई समस्या नहीं है। तो, आपकी अधूरी जानकारी को विस्तार दीजिये और इस समस्या के प्रति सवेंदनशील बनिए। बेशक सभी महिलाओं को माहवारी के समय परेशानी नहीं होती पर कइयों को होती है और इनकी संख्या लगातार बढ़ रही है। माहवारी के दौरान महिलाओं को हार्मोन्स परिवर्तन के कारण जो मानसिक त्रास(मूड ऑफ) होता है उसे छोड़ भ

Process of Healing / "राहत की प्रक्रिया"

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हर इंसान राहत चाहता है कोई दर्द से तो कोई तकलीफों से। ये दर्द और तकलीफ मानसिक भी हो सकती है, शारिरिक भी । तो आज हम इन सबसे राहत की जो प्रक्रिया होती है उसकी चर्चा करेंगे । ये बस एक चर्चा होगी कोई उपाय नहीं या निष्कर्ष नहीं। हालांकि हो सकता है चर्चा के दौरान हम किसी उपाय तक पहुँच जाए। देखा जाए तो ये बस मेरे अनुभवों और निरिक्षणों को साझा करने की भाँति है। तो चलिए शुरू करते हैं, अगर हम किसी शारिरिक पीड़ा की बात करें जैसे मान लिजिए आप दिनभर शारिरिक श्रम या वर्जिश के चलते थक गए हैं या ये थकान कई दिनों कि है। तो क्या होता है जब आप विश्राम की अवस्था में जाते हैं मतलब रात को या किसी भी समय जब आप लेटते हैं तब कुछ समय बाद आपको क्या महसूस होता है? यकीनन आपका दर्द बढ़ जाता है आपके शरीर के वे सभी अंग जो थक गए थे अब पहले से ज्यादा दर्द करने लगते हैं कई बार ये दर्द इतना बढ़ जाता है कि आप सो भी नहीं पाते। तो ये सब क्या हो रहा है ?आपको लगता है, इससे अच्छा तो आराम ही नहीं करना चाहिए था ।जबकि आराम तो एक राहत की प्रक्रिया है आपको शरीर की थकावट दूर करने का जरिया | पर इस प्रक्रिया ने आपका दर्द बढ़ा दिय

रिलेक्स मोड

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कभी-कभी व्यक्ति को कुछ समय के लिए रिलेक्स मोड में चले जाना चाहिए इस दौरान ज़िन्दगी को कुछ धीमी गति से जीना चाहिए...अपनी पसंद की चीजें करना अपने मन की सुनना और ज़िन्दगी की चूहा दौड़ से अलग होकर कुछ ऐसे पल बिताना जो आपको अहसास कराएं की हाँ, मै खुश हूँ अब भी इस समय भी, मेरे आस पास सब कुछ वाकई कितना अच्छा है । पढ़ाई या काम के बोझ को थोड़ा किनारे कर ज़िन्दगी के अन्य पहलुओं पर नज़र डालने वाला समय जो कहीं न कहीं आपको प्रेरित भी करता है क्योंकि कई बार ऐसा भी होता है कि मेहनत और असफलता के बाद हम हताश हो जाते हैं और सोचते हैं कि मैने इसे पाने के लिए क्या नहीं किया, हर पल इसके प्रति समर्पित रहा, हर समय अनुशासन का जीवन जीया, कभी समय बर्बाद(तथाकथित) नहीं किया, पढ़ने या काम के अलावा कभी किसी चीज पर ध्यान नहीं दिया, पर देखो, तब भी मुझे असफलता मिली। ये मायूसी आपको हताश कर देती है, आपके विचारों की नकारात्मक बना देती है आपको स्वयं पर एक तरह से तरस या दया आती है कि इसके लिए सारी इच्छाओं का दमन किया और उसका क्या सिला मिला। तो, जब आप इन सब(कार्यप्रणाली) के बीच थोड़ा समय अपने लिए निकालेंगे तो आपको

कुछ पंक्तियाँ

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समुद्र सी विशाल बन जिसका कोई किनारा नहीं, जिसका कोई सहारा नहीं कोई नदी मिले न मिले, अपना वजूद कायम तब भी रख किसी बारिश पर निर्भर नहीं रह, स्वयं को विस्तार दे कोई नहीं हो तब भी अपनी मस्ती में मगन रहना सीख सबके साथ खिल खिला लेकिन, साथ का इंतज़ार न कर तू चल, बस चलती जा, मंज़िल जरूर आएगी ये राहे भी कहाँ बुरी है, बस इनके मोह में न पड़ बहुत दूर जाना है तुझे, अपने आप को संभाल अपनी कमजोरियों से डटकर लड़, इनमें समय ज़ाया न कर तू अकेली नहीं है बहुत से सपने,बहुत सी उम्मीदें संग है तेरे याद रख तेरा मकसद, ये जीवन, ये समय इन व्यर्थ की बातों में न उलझा आगे बढ़, आगे बढ़ समुद्र सी विशाल बन